मेरी कहानी: एक यादगार सफर

मेरी कहानी: एक यादगार सफर

मैं कक्षा 6 से ही हमेशा पढ़े हुए को याद रखना चाहता था, लेकिन केवल एक ही तरीका था—बार-बार रट्टा मारकर पढ़ना और फिर भूल जाना। मैंने हर शिक्षक और वरिष्ठ छात्र से पूछा तो हर किसी ने अलग-अलग तरीके बताए। कोई कहता था बार-बार लिखकर याद करो, कोई कहता था बोल-बोलकर याद करो। हर किसी के अलग-अलग उत्तर आते थे, लेकिन वे समझा नहीं पाते थे कि हमेशा के लिए याद कैसे रखें।

मेरे पास मोबाइल 9वीं कक्षा में आया, और तब मैंने यूट्यूब और गूगल पर बहुत सर्च किया। सब जगह वही जवाब मिलते थे, जो मैंने पहले अपने शिक्षकों और वरिष्ठ छात्रों से सुने थे। लेकिन मेरे दिमाग में कक्षा 6 से ही यह विचार था कि ऐसा कोई तरीका होगा, जिससे एक बार पढ़ने या समझने से हमेशा याद रखा जा सके।

इस तरह 12वीं पास कर ली, लेकिन आगे पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि मेरे सबकॉन्शियस माइंड में यह बैठ गया था कि जो मैं याद करूंगा, वह एक समय के बाद भूल जाऊंगा। फिर 1 साल बाद सरकारी नौकरी निकली। मेरे दोस्तों ने उसका फॉर्म भर दिया, तो मैंने भी सोचा कि एक बार कोशिश करके देखता हूं। फॉर्म भरने के बाद उसे भूल गया कि परीक्षा कब होगी, क्योंकि मुझे यकीन था कि मैं याद किया हुआ भूल जाऊंगा।

परीक्षा की तारीख 3 महीने बाद निकली, तो मैंने उसकी तैयारी शुरू कर दी। मैं एक दिन में लगभग 14 घंटे पढ़ाई करता और नोट्स बनाता। पढ़े हुए का रिवीजन करता, लेकिन उससे कुछ नहीं हो रहा था। 5-6 दिन बाद फिर भूल जाता। इस तरह यह सिलसिला चलता रहा।

परीक्षा के लगभग 10 दिन पहले एक ऐसा सवाल आया, जिसे मैंने अपने नाम का उपयोग करके पढ़ा। पढ़ते ही वह सवाल याद हो गया। तभी मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा कि हमारे पास जो ज्ञान है, जिसे हम कभी नहीं भूल सकते, क्यों न उसी का उपयोग करके पढ़ाई को हमेशा के लिए याद रखा जाए। तब मैंने ब्रह्मांड के नियम को समझा, कि हर वस्तु एक-दूसरे से किसी न किसी माध्यम से जुड़ी हुई है।

इसके बाद मैंने 10 दिनों में बहुत कुछ याद किया, लेकिन इससे मैं परीक्षा पास नहीं कर सका। 2 महीने बाद रिजल्ट आया और मैं 9-10 नंबर से रह गया। फिर मैंने कुछ दिनों तक आराम किया और सोचना शुरू किया कि अब मैं आगे क्या करूं। एक दिन रात में सोते समय विचार आया कि ऐसा तरीका खोजा जाए, जिससे एक बार पढ़ने के बाद हमेशा याद रखा जा सके।

तब मैंने सोशल मीडिया पर खोजबीन शुरू की। हर जगह अलग-अलग सुझाव मिले। कोई ट्रिक बताने लगा, जो किसी विशेष विषय में ही लगती थी, लेकिन वह भी ठीक से काम नहीं करती थी। उल्टा दिमाग में भ्रम पैदा करने लगी। फिर मैंने अपने हिसाब से सोचना शुरू किया।

मैंने उसी तरीके को आधार बनाया, जिससे मैंने पहली बार सवाल याद किया था। इसके बाद हिंदी वर्णमाला को समझा कि वे कैसे काम करती हैं और उनमें क्या विशेष आकृतियां और ध्वनियां छिपी हुई हैं। ब्रह्मांड का नियम मेरे दिमाग में था कि हर एक चीज दूसरी से जुड़ी हुई है। इस तरह मैंने 60 दिनों में लगभग 50 फॉर्मूले तैयार किए।

फिर उनके ऊपर रिसर्च करके उनमें से 13 फॉर्मूले चुने, ताकि हर कोई उन्हें एक बार समझने के बाद किसी भी प्रश्न-उत्तर या पाठ में लगाकर हमेशा याद रख सके।